Monday, March 17

ये कैसी भारतीयता?

मैंने पिछले साल, दूरदर्शन के माध्यम से एक विज्ञापन देखा। यहाँ मैं उस विज्ञापन को रख रहा हूँ। ध्यान से देखियेगा, शायद विज्ञापन से ही आपको मेरे लेख का उद्देश्य समझ आ जाए।

इस विज्ञापन को देख कर ये सवाल आपके मन मस्तिष्क में जरुर उठ रहा होगा: इस विज्ञापन की क्या जरुरत है? ये तो हम सब जानते हैं कि राष्ट्र गान को सम्मान देने के लिए हम सबों को आपने पैरों पर खड़े होकर लयसे लय मिलाकर उसे गाना चाहिए। परन्तु आप शायद ये नही जानते कि भारत की करोडो की आबादी में ऐसे भी लोग हैं जो राष्ट्र से जुड़े इस तत्व को यह सम्मान भी नही देते , बल्कि ऐसे लोगों कि संख्या बहुत ही ज्यादा है।



अब
आप दूसरा वीडियो देखिये, इससे शायद आपको कोई सुराग मिलेये शायद आपको याद होगा कि हॉकी आपका, हमारा राष्ट्रीय खेल हैअब ये उपर्युक्त दृश्य देखियेये श्वेत- श्याम में है, जो देखकर आप तुरंत ही उब गए होंगेऐसा क्यों है ? क्या देश के लिए सबसे ज्यादा सोचने का दावा करने वाली देश का मीडिया तंत्र नही जानता कि हॉकी हमारा राष्ट्रीय खेल है? या यह सब क्रिकेट के चकाचौंध का नतीजा है?

देश कि सेवा का दावा करने वाले देश के व्यापारी गण, और सिनेमा जगत कि सारी बड़ी हस्तियाँ, जो आजकल क्रिकेट का गुन गान करते हुए नही अघाते हैं, और सारे बड़े खिलाड़ियों को को ऊँची कीमत देकर खरीद रहे हैं, क्या उन्हें हॉकी की मदद करने की नही सूझ रही ? अगर ऐसा है तो कैसी देशभक्ति और कैसी भारतीयता, अरे छोडो यार ये सब फंडे किसी और को समझाओ

हॉकी
के खिलाड़ियों को उनकी हर जीत पर अगर उत्साहित किया जाता, और सारे देश की नज़र इस खेल पर होती तो शायद तस्वीर दूसरी होती।शायद एक या दो वीडियो बना कर देश के सबसे बड़े खेल और इससे जुड़े खिलाड़ियों को प्रोत्साहित किया जा सकता था, जो कभी किया नही गया। शायद भारत में ऐसे भी बहुत कम ही लोग होंगे तो धनराज पिल्लै के बाद के किसी हॉकी खिलाड़ी को जानते भी होंगे, नक्शे कदम चलने की बात तो दूर है।देश के सबसे बड़े खेल हॉकी के बारे में दिखाने में देश की मीडिया की इज्जत जाती है, देश के सबसे बड़े खेल से जुड़े खिलाड़ियों के बारे में लोग नही जानते। क्या है ये?

अगर खेल की बढोतरी ही पैमाना है, तो फ़िर क्रिकेट की बजाय शतरंज को ये सम्मान मिलना चाहिए, क्यूंकि पिछले कुछ साल में शतरंज उन कुछेक खेलों में से है जहाँ भारतीय बादशाहत बरकरार है, नाकी क्रिकेट ।

अभी भी वैसे सब कुछ नही बिगड़ा, अगर अभी भी हॉकी को वैसी ही मदद मिले जो आइ सी एल और आइ पी एल की सहायता से क्रिकेट को दे रहे हैं ये लोग, तो शायद हॉकी खेलने वाले लोग भी उभरेंगे।वरना हॉकी शायद देश के मानचित्र से गायब हो जाए। शायद ऐसा ही देश से जुड़े बाकी चीजों की हालत भी है।
क्या कोई सुन रहा है?

भारत और भारतीयता की रक्षा करनी है तो आगे आओ दोस्तों, वरना शायद देर ना हो जाए ..........

1 comment:

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत सामयिक लेख है।सिर्फ हाँकी ही नही हमें सभी खेलों की ओर ध्यान देनें की जरूरत है।लेकिन इस भाई-भतीजा वाद के चलते शायद ही कुछ हो।