क्या दिल्ली के लेफ्टिनेंट गवर्नर का बयान सही है?
क्या उत्तर भारतीयों में कानून तोड़ने की मानसिकता प्राकृतिक रूप से भरी है?
या उनका यह बयान संविधान द्वारा दिए गए अधिकारों से बाहर है ?
कल ट्रैफिक पुलिस के सम्मेलम में दिल्ली के लेफ्टिनेंट गवर्नर श्री तेजेंदर खन्ना का एक बयान आया, जिसने उत्तर भारत में एक नया बवंडर खडा कर दिया.यह बयान था" उत्तर भारतीय लोग प्राकृतिक रूप से कानून तोड़ने में ज्यद्सा विश्वास करते हैं.
इस बयान ने बवंडर इसलिए भी खडा किया क्यूंकि उन्होने ट्रैफिक पुलिस को चलेँ चिट दे दी.उत्तर भारत में रहने वाले सारे लोग जानते हैं की उत्तर भारत में सबसे भ्रष्ट यहाँ के ट्रैफिक पुलिस वाले हैं, जो अगर कर्तव्य परायण होते तो ब्लू लाईन वाली काफी घटनाओं को रोका जा सकता था.
दूसरी बात मेरा और काफी सारे विशेषज्ञों का मानना है कि उत्तर भारतीयों की बजाय, समाज का एक वर्ग है जो कानून का पालन नहीं करना चाहता.
ये वर्ग है धनाढ्य वर्ग, जो कानून को अपनी जेब में लेकर घूमने का दावा करता है.ये वर्ग पुलिस और प्रशासन को भी यदा कदा जरुरत पर खरीदता रहा है, कभी पैसों से, कभी आपने प्रभाव से.
अतः ये कहना कि उत्तर भारतीयों में कानून तोड़ने कि प्रवृति पाई जाती है, गलत है.
वैसे राजनीतिज्ञों के के दबाव में आकर श्री खन्ना को अपना बयान बदलना पड़ा है..
परन्तु ये घटना यह सोचने को विवश करती है कि क्या संवैधानिक पदों पर बैठे हुए लोगों को आपने बयान देने के समय सावधानी नहीं बरतनी चाहिए? क्या उन्हें अपने संवैधानिक दायरे का उल्लंघन करने का अधिकार है? अगर ऐसा होता रहा तो भारत में कानून का नहीं, इन लोगों का राज होगा, मतलब प्रजातंत्र कि बजाय एक बार फिर राज तंत्र का परचम लहरायेगा.
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