रात को बेचैनी में करवट बदल रहे थे..
दिल ही दिल में कई अरमान मचल रहे थे..
गिरे जो बिस्तर से सर ऐसा फूटा...
प्रियजनों के आने से अकेलापन छूटा..
मेहमानों के खर्चे से खुद हुए बेजार..
क़र्ज़ चुकाते-चुकाते बिक गया घर बार ..
क़र्ज़ लेने को घर आये लेनदार..
न चूका पाने पर बुला लाये थानेदार..
मरम्मत हुई ऐसी की हुए खस्त-ए-हाल..
ज़माने की ठोकरों से हुए फटेहाल..
ऐसे में मदद करे यार वो ही सच्चा...
ऐसे दर्द-ए-तन से अकेलापन अच्छा..
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