Friday, March 21

नमन है उनको-१ (सरदार अजीत सिंह)

इस धारावाहिक के पहले अंक में मैंने जगह दी है उस महान शख्सियत को, जिसके बारे में कभी श्री बाल गंगाधर तिलक ने कहा था " ये स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति बनने योग्य हैं "। उन्हें क्या पता था कि आज़ादी के साथ आयेगी विभाजन कि त्रासदी, जिससे पीड़ित होकर यह व्यक्ति दुनिया से विदाई ले लेगा।
ये शख्सियत हैं: सरदार अजीत सिंह
  • जब तिलक ने ये कहा था तब सरदार अजीत सिंह की उम्र केवल २५ साल थी। रिश्ते में भगत सिंह के चाचा थे । अब वो सन्दर्भ जिनके कारण तिलक ने इस शख्सियत के बारे में ऐसा कहा था:
  • १९०९ में सरदार अपना घर बार छोड़ कर देश सेवा के लिए विदेश यात्रा पर निकल चुके थे, उस समय उनकी उम्र थी:२८ साल।
  • इरान के रास्ते तुर्की, जर्मनी, ब्राजील, स्विट्जरलैंड,इटली, जापान आदि देशों में रहकर उन्होंने क्रांति का बीज बोया ओर आजाद हिन्द फौज की स्थापना की।
  • नेताजी को हिटलर ओर मुसोलिनी से मिलाया। मुसोलिनी तो उनके व्यक्तित्व के मुरीद थे।
  • इन दिनों में उन्होंने ४० भाषाओं पर विजय प्राप्त कर ली थी। ऐसा था उनका व्यक्तित्व।
  • रोम रेडियो को तो उन्होंने नया नाम दे दिया था, आजाद हिन्द रेडियो। ओर इसके मध्यम से क्रांति का प्रचार प्रसार किया।
  • ३८ साल बाद जब मार्च १९४७ में वो भारत वापस लौटे, तब उनकी उम्र थी- ६६ साल।
भारत लौटने पर पत्नी ने पहचान के लिए कई सवाल पूछे, जिनका सही जवाब मिलने के बाद भी उनकी पत्नी को विश्वास नही । इतनी भाषाओं के ज्ञानी हो चुके थे सरदार, कि पहचानना बहुत ही मुश्किल था।
४० साल तक एकाकी और तपस्वी जीवन बिताने वाली श्रीमति हरनाम कौर भी वैसे ही जीवत व्यक्तित्व वाली महिला थीं।
देश के विभाजन से इतने व्यथित थे सरदार कि १५ अगस्त १९४७ के सुबह ४ बजे उन्होंने आपने पूरे परिवार को जगाया, ओर जय हिन्द कह कर दुनिया से विदा ले ली।
जैसा की हर महान व्यक्ति के बारे में कहा जाता है, वैसे ही सरदार के बारे में यहाँ कहना चाहूँगा:
सरदार अजीत सिंह मरा नहीं,
देश भक्त कभी मरते नहीं।
होता है बस shareer परिवर्तन,
एक नई क्रांति लाने को।।


अगले अंक में उस महान क्रांतिकारी की गाथा है जिसने कभी भगत सिंह से कहा था कि मैने जिंदगी भर तो तुम्हारे नौकर की भूमिका में अंग्रेजों की आँखों में धूल झोंका था, अब मौत के बाद की दुनिया में भी तुम्हारे पहले जाकर तुम्हारा सारा सामान तैयार करूँगा, और वो महान क्रांतिकारी फांसी को चूम कर उससे झूल गया॥



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