Monday, March 31

नमन है उनको-३ (शिव वर्मा)

शिव वर्मा, हाँ यही नाम था उस शख्स का, जो भगत सिंह के समूह का एक विश्वसनीय सदस्य था।जब भगत सिंह वगैरह को फांसी की सज़ा हुई , उस समय इनको उम्रकैद की सज़ा हुई।
भगत सिंह ने अपनी शहादत के पहले, शिव वर्मा से हुई आखिरी मुलाकात में उनसे कहा था, जिसकी कुछ पंक्तियाँ शायद ऐसे थीं-"हमलोग तो आजादी के इस संघर्ष में अपनी लड़ाई लड़ते हुए अब अपने प्राण त्याग देंगे, पर तुम जैसे मेरे साथियों का काम बहुत ही जटिल होने वाला है। यह काम है आजाद भारत में भी जुल्मों और ग़लत बातों के ख़िलाफ़ लड़ते रहना। "
इस बात पर शिव वर्मा ने वचन दिया कि वो ताउम्र अपने देश में जुल्मों और ग़लत बातों के ख़िलाफ़ लडेंगे, और उस महान आदमी ने ऐसा किया भी।आज की दुनिया में एक भिखारी को रोटी देने के समय भी लोग उससे फायदा खोजते हैं, वो महान देशभक्त देश और देशवासियों के हक के लिए लड़ाई लड़ा और इस लड़ाई में उसे कांग्रेसी सरकार ने, जो देशभक्ति का ठेका लेकर सत्ता के गलियारे में पहुँची थी, १९४७, १९६२ और १९६४ में जेल भेजा।
इस तरह उस महान देशभक्त ने अपने जीवन के २५ साल देश सेवा के लिए जेल के अंदर बिताये।
इस महान शख्स कि मृत्यु १० फरवरी १९९७ में हुई। शायद देश के नौजवान उस समय विदेशियों के तौर- तरीकों की नक़ल करने में लगे हुए थे, और उनसे उन्हें ये समय ना मिला हो कि ये देख सकें की एक महान देशभक्त परम धाम की ओर प्रस्थान कर रहा है॥

अपने लिए जीना है क्या जीना,
देश के लिए मरना ही है मरना।
अगर देशसेवा ना कर सके तो,
इस जवानी का क्या करना॥
ऐसे महान शख्स के बारे में शायद उपर्युक्त पंक्तियाँ कुछ ऐसे हों जैसे एक बहुत ही अमीर सेठ को एक रूपये का चन्दा। पर शायद अभी शब्द ही धोखा दे रहे हैं।


अगले अंक में उस महान देशभक्त की कहानी जिसने अपने शिक्षक की नौकरी केवल इसलिए छोड़ दी की वो चंद्र शेखर आज़ाद का दोस्त ओर साथी बनना चाहता था।

Monday, March 24

रोजर फेडरर कहीं ब्योर्न बोर्ग के पुर्नजन्‍म तो नहीं

दुनिया के नंबर एक टेनिस (Tennis) खिलाड़ी स्विट्ज़रलैंड के रोजर फ़ेडरर (Roger Federer) ने लगातार पाँचवीं बार विंबलडन का ख़िताब जीतकर महान ब्योर्न बोर्ग (Bjorn Borg) के रिकॉर्ड की बराबरी कर ली है। अब इसे फेडरर की महानता की कहा जायेगा या ब्योर्न बोर्ग क्‍योकि दोनो अपने आप में महान है। नीचे कुछ चित्र है जो यह बताते है कि कि इस जन्‍म में भी अवतार हो सकता है। ब्योर्न बोर्ग आज फेडरर को देख निश्‍चित रूप से अपने पिछले दिन याद कर रहे होगा।

ब्योर्न बोर्ग के बारे कहा जाता है कि 1978, 79, 80 में बोर्ग पेरिस के 'क्ले कोर्ट' पर लगातार खिताब (फ्रेंच) जीतने में जुटे हुए थे, उन्हीं वर्षों में वे एक अलग सतह अर्थात लंदन के 'ग्रास कोर्ट' पर भी खिताब जीत रहे थे और वह भी लगातार। जी हाँ 1978, 79 व 80 में बोर्ग ने विम्बलडन खिताब भी जीतकर एक विशिष्ट कीर्तिमान बनाया था।

अपने विजय अभियान में बोर्ग ने यदि फ्रेंच ओपन में जी. विलास (78), वी. पेक्की (79) और जेरुलाइटिस (80) को हराया था तो इन्हीं तीन वर्षों में ग्रास कोर्ट के मास्टर माने जाने वाले जिमी कोनोर्स, रास्को टेनर एवं जॉन मेकनरो को विम्बलडन में हराया था।
दो विभिन्न सतहों पर खिताबी हैट्रिक बनाना आसान बात नहीं थी किंतु महान बोर्ग ने इसे संभव बनाया था। जब ग्रास कोर्ट के मास्टर पीट सैम्प्रास एक अदद 'फ्रेंच खिताब' के लिए तरसते रहे हों अथवा 'क्ले मास्टर' इवान लेंडल ' विम्बलडन' की आशा में ही मुरझा गए हों, वहाँ बोर्ग की दोनों में हैट्रिक उन्हें विशिष्ट खिलाड़ी ही बनाती है।

फेडरर के दिल में आज सिर्फ यही कसक होगी कि वह आप नही जीत पाये है तो सिर्फ फ्रेंच ओपन कहते है कि यह लाल मिट्टी हर किसी को नही सुहाती है, यही कारण है कि आज तक कई दिग्‍गजो को यह खिताब नही जीत पाने का मलाल है।

नीचे चित्रों में ब्योर्न बोर्ग और रोजर फेडरर को एक साथ देखिए।

नमन है उनको- २ (राजगुरु)

राजगुरु, हाँ यही नाम तो लोकप्रिय है, उस महान नायक का जिसने भगत सिंह के कदम से कदम मिलाकर अंग्रेजों को नाकों चने चबवा दिए।

शिवराम हरी राजगुरू, २४ अगस्त १९०८ में,पूना (महाराष्ट्र) के खेडा गाँव में जन्में थे। १५ साल की छोटी उम्र में ही क्रांति का अलख जन-जन तक पहुँचाने का बीडा उठाया और अपने को जननी जन्मभूमि पर होम कर दिया।

क्या था उस महानायक में कि वो अंग्रेजों के हर जुल्म को सहता हुआ देश की आजादी के लिए जीवन पर्यंत प्रयत्नरत रहा?शायद अब वो खून भारत कि धरती ने उपजाना बंद कर दिया है।

एक ऐसा महानायक,जो हमेशा कहता था "भारत माता को आजाद कराने के लिए हर लड़ाई में मैं सबसे आगे चलूँगा", और असेम्बली बम काण्ड में नही सम्मिलित किए जाने पर बहुत नाराज़ हुआ।
परन्तु भारत माता को शायद उससे बहुत प्यार था, तो ही तो उस महानायक कि ये इच्छा भी पूरी कर दी, ताकि वो देश कि आजादी के महासंग्राम में अन्य देशभक्तों से पीछे ना रहे।
और वो महानायक, २३ साल की अल्पायु में, २३ मार्च १९३१ को भगत सिंह और सुखदेव के साथ भारत माता के चरणों में ख़ुद को अर्पित करने के लिए, फांसी पर झूल गया।
उस महानायक के लिए निम्न पंक्तियाँ शायद चाँद को दिया दिखाने जैसा हो:


जाने कहाँ गए वो जोगी,
वतन की आज़ादी के रोगी,
कहते थे अपनी सारी आहों में,
मर जायेंगे वतन की राहों में

अगले अंक में उन महान देशभक्त की कहानी संकलित होने वाली है, जिसने भारत की आजादी के बाद भी जुल्म के ख़िलाफ़ आवाज उठाते हुए यानि अपने जीवन के २५ साल जेलों या कालेपानी में गुजारा।

Friday, March 21

नमन है उनको-१ (सरदार अजीत सिंह)

इस धारावाहिक के पहले अंक में मैंने जगह दी है उस महान शख्सियत को, जिसके बारे में कभी श्री बाल गंगाधर तिलक ने कहा था " ये स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति बनने योग्य हैं "। उन्हें क्या पता था कि आज़ादी के साथ आयेगी विभाजन कि त्रासदी, जिससे पीड़ित होकर यह व्यक्ति दुनिया से विदाई ले लेगा।
ये शख्सियत हैं: सरदार अजीत सिंह
  • जब तिलक ने ये कहा था तब सरदार अजीत सिंह की उम्र केवल २५ साल थी। रिश्ते में भगत सिंह के चाचा थे । अब वो सन्दर्भ जिनके कारण तिलक ने इस शख्सियत के बारे में ऐसा कहा था:
  • १९०९ में सरदार अपना घर बार छोड़ कर देश सेवा के लिए विदेश यात्रा पर निकल चुके थे, उस समय उनकी उम्र थी:२८ साल।
  • इरान के रास्ते तुर्की, जर्मनी, ब्राजील, स्विट्जरलैंड,इटली, जापान आदि देशों में रहकर उन्होंने क्रांति का बीज बोया ओर आजाद हिन्द फौज की स्थापना की।
  • नेताजी को हिटलर ओर मुसोलिनी से मिलाया। मुसोलिनी तो उनके व्यक्तित्व के मुरीद थे।
  • इन दिनों में उन्होंने ४० भाषाओं पर विजय प्राप्त कर ली थी। ऐसा था उनका व्यक्तित्व।
  • रोम रेडियो को तो उन्होंने नया नाम दे दिया था, आजाद हिन्द रेडियो। ओर इसके मध्यम से क्रांति का प्रचार प्रसार किया।
  • ३८ साल बाद जब मार्च १९४७ में वो भारत वापस लौटे, तब उनकी उम्र थी- ६६ साल।
भारत लौटने पर पत्नी ने पहचान के लिए कई सवाल पूछे, जिनका सही जवाब मिलने के बाद भी उनकी पत्नी को विश्वास नही । इतनी भाषाओं के ज्ञानी हो चुके थे सरदार, कि पहचानना बहुत ही मुश्किल था।
४० साल तक एकाकी और तपस्वी जीवन बिताने वाली श्रीमति हरनाम कौर भी वैसे ही जीवत व्यक्तित्व वाली महिला थीं।
देश के विभाजन से इतने व्यथित थे सरदार कि १५ अगस्त १९४७ के सुबह ४ बजे उन्होंने आपने पूरे परिवार को जगाया, ओर जय हिन्द कह कर दुनिया से विदा ले ली।
जैसा की हर महान व्यक्ति के बारे में कहा जाता है, वैसे ही सरदार के बारे में यहाँ कहना चाहूँगा:
सरदार अजीत सिंह मरा नहीं,
देश भक्त कभी मरते नहीं।
होता है बस shareer परिवर्तन,
एक नई क्रांति लाने को।।


अगले अंक में उस महान क्रांतिकारी की गाथा है जिसने कभी भगत सिंह से कहा था कि मैने जिंदगी भर तो तुम्हारे नौकर की भूमिका में अंग्रेजों की आँखों में धूल झोंका था, अब मौत के बाद की दुनिया में भी तुम्हारे पहले जाकर तुम्हारा सारा सामान तैयार करूँगा, और वो महान क्रांतिकारी फांसी को चूम कर उससे झूल गया॥



Wednesday, March 19

होली आई रे...




देखो यारों देखो होली आई रे...
रंग रंगीला मौसम देखो लायी रे॥



अबीर
गुलाल से रंगीन हो रहा संसार,
पकवानों की सुगंध से सराबोर हो रहा घर बार।
देखो एक नया संसार लेकर होली आई रे,
देखो यारों देखो होली आई रे॥

सजने लगी देखो सारी रंगोलियाँ,
मिल गई बचपन की सारी हम्जोलियाँ।
जीवन में त्यौहार देखो लायी रे,
देखो यारों देखो होली आई रे॥

देखो आया मौसम यारों पकवानों का,
ओर अग्रजों को मिलने वाले सम्मानों का।
फिजाओं में प्यार की फुहार लेकर आई रे,
देखो यारों देखो होली आई रे


यार दोस्तों का मिलन लेकर आई रे,
प्यार के संदेश को फैलाने देखो आई रे।
एकता का प्रदर्शन करने आई रे,
देखो यारों देखो होली आई रे। देखो यारों देखो होली आई रे॥