प्रोफेसर निगम का जन्म ८ दिसम्बर १९०६ को दिल्ली में हुआ था। वो केवल दो वर्ष के थे जब माता पिता का देहांत हो गया। एक ऐसे व्यक्ति के तौर पर लोग उन्हें जानते थे जिसने अपना भविष्य ख़ुद लिखा, अपने स्वावलंबन के दम पर।
प्रोफेसर निगम, जिसने इतिहास विषय से परास्नातक की परीक्षा दी, और ना केवल प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण हुए, बल्कि पूरे विश्वविद्यालय में प्रथम स्थान प्राप्त किया था, और वो भी अंकों का नया कीर्तिमान स्थापित करते हुए।ये दिल्ली के हिंदू कालेज में इतिहास के प्राध्यापक हुए।
इसी समय, जब वे हिंदू कालेज में पढ़ा रहे थे, उनकी दोस्ती कुछ क्रांतिकारियों से हुई। चन्द्रशेखर आज़ाद के व्यक्तित्व से इतने प्रभावित हुए कि देशसेवा का जज्बा ख़ुद ही आ गया।
काकोरी काण्ड के गद्दारों को सज़ा देने का काम इन्हें ही मिला था, और उसे करने के दौरान ही पकड़े गए। पठन पाठन से इतने जुड़े व्यक्ति थे कि ये ही उनके पकड़े जाने का कारण बना। ४ दिसम्बर १९३० को पकडे गए । जेल में तरह तरह कि यातनाएं देकर भी अंग्रेज़ उनसे चन्द्रशेखर आजाद का पता नही पा सके। देश के लिए बार बार जेल के मेहमान बनते रहे। चन्द्रशेखर आज़ाद के इतने करीब थे कि उनपर एक किताब भी लिखी, आख़िर उनको गर्व था इतने महान क्रांतिकारी का विश्वास्भाजन बनने का।
वतन के लिए जीना है,
वतन के लिए मरना है।
इसके सिवा मेरे दोस्त,
और भला क्या करना है॥
इस महान देशभक्त के लिए उपर्युक्त पंक्तियाँ शायद ऐसे हैं जैसे क्षीरसागर में एक लोटा पानी डाला जा रहा हो।
अगले अंक में उस वीरांगना के परिचय के लिए एक छोटा सा लेख जिसने अपने पति के कदम से कदम मिलकर देश सेवा का बीडा उठाया और उसे ताउम्र निभाया।
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