Thursday, February 28

ताज महल या तेजो महालय






ताज महल (हवाई दृश्य )







गुम्बद और ध्वज का नजदीक से दृश्य









सामने से दृश्य ताज का









वो जगह जहाँ के बारे में कहा जाता है कि मुमताज़ को दफनाया गया









बर्हंपुर का महल जहाँ मुमताज़ की मृत्यु हुई











ईंटों से बंद किया हुआ दरवाज़ा जिसने सारे सबूतों को छिपाने में मदद की है









बड़ा सा बंद रोशनदान








वेदिक डिजाईन एक बंद कमरे की छत पर












एक और कमरे का अंदरूनी दृश्य







२२ गुप्त कमरों में से एक का अंदरूनी दृश्य











निचले तल के २२ गुप्त कमरों में से एक














३०० फीट लंबा गलियारा













उपरी तल पर जाने की सीढ़ी












, दीवार के फूलों में






निचले तल का संगमरमर युक्त कक्ष






उपरी तल पर एक बंद कमरा









संगीत कक्ष (एक और अपवाद )











ताज के पिछले भाग में बने खिड़की और दरवाजे जिन्हें बंद कर दिया गया है







ताज और उसके २२ भागों का पिछला दृश्यावलोकन










लाल गुलाब द्वार के ठीक ऊपर












ताज के बाहर में एक प्रतिबिम्ब ध्वज का










एक ईंटों की दीवार जिसने काफी सारे सबूत छिपा दिए हैं










अंदरूनी कुआँ







अपनी एक किताब "Taj Mahal : A True Story " में प्रो पी एन ओक ने इसका प्रतिवाद किया है॥
उन्होंने कहा है कि ताज किसी मुमताज की कब्रगाह नहीं बल्कि हिन्दुओं का देव स्थान " शिव मन्दिर" था। और इसका वास्तविक नाम तेजो महालय है। आपने छानबीन के दौरान उन्होंने ये जन की तेजो महालय , शाह जहाँ ने जयपुर के राजा जय सिन्ह से हड़प लिया था। ये तो अपने बादशाह-नामा में भी शाह जहाँ ने कबूला है की एक बेहद खूबसूरत इमारत उन्होंने ली थी, मुमताज की कब्रगाह बनने के लिए।
कुछ और भी बातें हैं जो इस बात को सत्यापित करतीं हैं : जैसे कि

  • किसी भी मकबरे में कुआँ नही होता।
  • कहा जाता है कि ताज महल पूरी तरह से मकराना संगमरमर से बना है, तो फ़िर वहाँ कि दीवारों में कुछ स्थान जहाँ दरवाजे खिड़की होने के निशान पाए जाते हैं वहाँ ईंटों कि दीवार क्यों बनी हुई है, और फ़िर उन कमरों में लोगों को क्यों नहीं जाने दिया जाता लोगों को?
  • एक स्थान है जहाँ से पानी गिरता है जिसे देख कर लोग कहते हैं की औरंगजेब रो रहा है, और दिलचस्प बात ये भी है की उसी स्थान पर शिवलिंग होने का दावा किया जाता रहा है।
  • किसी भी मुस्लिम राज्य में किसी इमारत (कब्रगाह की ) के नाम में महल नही होता ॥
  • किसी भी मुस्लिम कब्रगाह को किसी नदी के पास नही बनाया गया।
  • कमल वेदिक कलाकृतियों में इस्तेमाल होती थी, नाकि मुग़ल कलाकृतियों में।
पता नहीं सच्चाई क्या है, पर इतना तो जरुर सत्य है कि हमारी इतिहास कि किताबों ने हमें गुमराह ही किया है इतिहास के बारे में ।

ऐसे बहुत सारे सन्दर्भ हैं जो यह साबित करतें हैं कि हमारी इतिहास की किताबें सरकारों के अनुसार बदलती रही हैं । मसलन आप अभी के हालत भी देख सकते हैं, की देश में सत्ता परिवर्तन के बाद कैसे इतिहास की पुस्तकों में भरी फेर बदल होता है।


भारतीयों ने अगर इन सब बातों के ख़िलाफ़ आवाज़ नही उठाई तो उन्हें अपने इतिहास पर गौरव करने का अधिकार भी खोना पड़ सकता है।


तो क्या ये समय है हल्ला बोलने का ? क्या अब हम सब भारतीय एक साथ हल्ला बोलेंगे ?
इन सब सवालों का जवाब तो वक्त देगा॥


Thursday, February 14

एक हो सारा भारत


जागो भारत के नौजवानों,
भारतीयता पर अब खतरा है..
सुनो वो चीत्कार रहा ,
लहू का हर एक कतरा है.

कोई उत्तर दक्षिण करता है,
कोई पूरब पश्चिम करता है,
कोई मराठी मराठी रोता है,
और भारतीयता को खोता है..

आओ, बढ़ो,
तोड़ दो ऐसे मंसूबों को,
भारत एक है,
तोड़ दो भारत के इन सूबों को..

ऐसा दृश्य दिखाओ कि,
कोई कभी ना तोड़े भारत को,
स्मरण करो अर्जुन को,
और चक्रव्यूह तोड़ने की महारत को...

तोड़ दो इन ज़ंजीरों को,
जो गुलामी तक ले जाएगी,
फिर नेता, गुंडों, और प्रशासन
इनकी अंधी हुकूमत आयेगी...

भारत को एक करने का इरादा,
देश के जन जन में हो,
एक नया भारत बनाने का
इरादा मन में हो...

Sunday, February 10

हिन्दी हिन्दुस्तान की भाषा


हिन्दी हिन्दुस्तान की भाषा,
सारे देश-ज़हान की भाषा,
आओ, इसको हम अपनाएं,
इसका गौरव नित्य बढ़ाएं.

वैभवशाली राष्ट्र की भाषा,
हिन्दी "अंतरजाल" की भाषा,
कम्प्यूटर विज्ञान की भाषा,
जनता और सुलतान की भाषा.

युनीकोड ने किया कमाल,
हिन्दी का दे, "अन्तर्जाल",
गूगल इसको दे सम्मान,
माइक्रोसॉफ़्ट भी गया है, मान.

है प्रयोग इसका आसान,
नहीं चाहिए, ज्यादा ज्ञान,
चलें लगाएं, इसमें ध्यान,
कोशिश को दें नहीं विराम.

"अन्तर्जाल" को दें खंगाल,
इसमें कोई नहीं बवाल,
कोई इसमें नहीं सवाल,
इसका है परिणाम कमाल.

"गुड-मॉर्निंग" को कहें विदा-
बोलें सबको शुभ-प्रभात,
अच्छा लगे, "रात्रि-शुभ" कहना-
जब हो जाये थोड़ी रात.

देश महान तभी होगा जब-
भाषा को देंगे सम्मान,
घर में हिन्दी, बाहर हिन्दी,
हिन्दी में हों सारे काम.

Saturday, February 9

चौपाटी में लाठी

भारत जैसे विशाल देश में, जब भाषा तथा क्षेत्रवाद को लेकर विवाद होते है तो कष्‍ट की अनुभूति होती है। मुझे मराठियों से काफी लगाव है इसका मुख्‍य कारण छत्रपति शिवाजी और काफी हद तक बाला साहब का व्‍यक्तित्‍व है। हाल के दिनों में जिस प्रकार मुम्‍बई में राज के सैनिकों ने तांडव किया वह यह दर्शाता है कि भारत में अभी भी क्षेत्रवाद का अंत नही है।
तमिलनाडु से लेकर पूवोत्‍तर भारत राज्‍यों में जो दहशत देखने को मिलती है वह यह दर्शाता है कि भारत नागरिक आज भारत में भी सुरक्षित नही है। आज केन्‍द्र सरकार हो या राज्‍य सरकार आज अपने देश की सुरक्षा की गारंटी लेने को तैयार नही है। मेरे ख्‍याल से राज की मराठी व्‍यक्तियों को लेकर चिन्‍ता जायज है किन्‍तु उनका प्रर्दशन नाजायज था। पर यहॉं पर यह बात स्‍वीकार करने होगी कि जिनती चिन्‍ता राज ठाकरें को है शायद उतनी मराठियों को नही होगी। राज ठाकरे की नीयत महाराष्‍ट्र के अपनी पैठ बानने ही और वह इस नब्‍ज को दबा रहे है।
आज एक प्रश्‍न उठता है कि इस क्षेत्रवाद का अंत क्‍या होगा ? क्‍या सरकार को इस आतंरिक आतंकवाद को नियत्रण में करने का साहस नही है ? इस आंतरिक आंतंकवाद को देशद्रोह माना जाना चाहिए। और इसके पोषको को दण्डित किया जाना चाहिए ताकि भारत के सविधान की मूलभावना कि हम भारत के लोग को बरकारर रखा जा सकें।

Friday, February 8

क्या यही प्रजातंत्र है?

क्या दिल्ली के लेफ्टिनेंट गवर्नर का बयान सही है?
क्या उत्तर भारतीयों में कानून तोड़ने की मानसिकता प्राकृतिक रूप से भरी है?
या उनका यह बयान संविधान द्वारा दिए गए अधिकारों से बाहर है ?
कल ट्रैफिक पुलिस के सम्मेलम में दिल्ली के लेफ्टिनेंट गवर्नर श्री तेजेंदर खन्ना का एक बयान आया, जिसने उत्तर भारत में एक नया बवंडर खडा कर दिया.यह बयान था" उत्तर भारतीय लोग प्राकृतिक रूप से कानून तोड़ने में ज्यद्सा विश्वास करते हैं.
इस बयान ने बवंडर इसलिए भी खडा किया क्यूंकि उन्होने ट्रैफिक पुलिस को चलेँ चिट दे दी.उत्तर भारत में रहने वाले सारे लोग जानते हैं की उत्तर भारत में सबसे भ्रष्ट यहाँ के ट्रैफिक पुलिस वाले हैं, जो अगर कर्तव्य परायण होते तो ब्लू लाईन वाली काफी घटनाओं को रोका जा सकता था.
दूसरी बात मेरा और काफी सारे विशेषज्ञों का मानना है कि उत्तर भारतीयों की बजाय, समाज का एक वर्ग है जो कानून का पालन नहीं करना चाहता.
ये वर्ग है धनाढ्य वर्ग, जो कानून को अपनी जेब में लेकर घूमने का दावा करता है.ये वर्ग पुलिस और प्रशासन को भी यदा कदा जरुरत पर खरीदता रहा है, कभी पैसों से, कभी आपने प्रभाव से.
अतः ये कहना कि उत्तर भारतीयों में कानून तोड़ने कि प्रवृति पाई जाती है, गलत है.
वैसे राजनीतिज्ञों के के दबाव में आकर श्री खन्ना को अपना बयान बदलना पड़ा है..
परन्तु ये घटना यह सोचने को विवश करती है कि क्या संवैधानिक पदों पर बैठे हुए लोगों को आपने बयान देने के समय सावधानी नहीं बरतनी चाहिए? क्या उन्हें अपने संवैधानिक दायरे का उल्लंघन करने का अधिकार है? अगर ऐसा होता रहा तो भारत में कानून का नहीं, इन लोगों का राज होगा, मतलब प्रजातंत्र कि बजाय एक बार फिर राज तंत्र का परचम लहरायेगा.